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स्वयं प्रकाश – हिंदी के प्रसिद्द साहित्यकार

स्वयं प्रकाश का जन्म 20 जनवरी 1947 को मध्यप्रदेश के इंदौर शहर में हुआ था।

उनका बचपन राजस्थान में व्यतीत हुआ।वे मुख्यतप्र हिन्दी कहानीकार के रूप में विख्यात हैं।

कहानी के अतिरिक्त उन्होंने उपन्यास तथा अन्य विधाओं को भी अपनी लेखनी से समृद्ध किया है।अब तक उनकी तेरह कहानी संग्रह और पाँच उपन्यास प्रकाशित हो चुके है।कुछ प्रमुख संग्रह इस प्रकार है कृ
सूरज कब निकलेगा ॉ आएँगे अच्छे दिनॉ आदमी जात का आदमी ॉसंधान।

उपन्यास कृ बीच में विनय ॉईंधन ।

उनकी कृतियों पर उन्हें पहल सम्मान ॉ बनमाली पुरस्कार ॉ राजस्थान साहित्य अकादमी पुरस्कार आदि प्राप्त हो चुके है।

स्वयं प्रकाश हिन्दी के जानेदृमाने कथाकार हैं। उनकी कहानियाँ हिन्दी के पाठकों और आलोचकों में समान रूप से लोकप्रिय रही हैं। सत्तर के दशक में अपना कहानी लेखन प्रारंभ करने वाले स्वयं प्रकाश की पहचान ऐसे कहानीकार के रूप में हैॉ जो सहजता से अपनी बात कह देते हैं और उनकी कोई कहानी ऐसी नहीं होतीॉ जिसमें सामाजिकता का उद्देश न हो।

इस तरह से हिंदी में प्रेमचंदॉ यशपालॉ भीष्म साहनीॉ हरिशंकर परसाई और अमरकांत की परंपरा के वे बडे कथाकार हैं।भारतीय जीवन की मर्म को उनकी कहानियों में देखा जा सकता है। मध्य वर्ग के रागदृविराग हों या नौकरीपेशा सामान्य गृहस्थी के द्वद्वंॉ युवा वर्ग की उलझनें हों या महिलाओं के संघर्ष कृ स्वयं प्रकाश की कहानियाँ पूरे भारतीय समाज को अपने दायरे में लेती हैं।

वे उन लोगों में नहीं थे जो भारतीय समाज की हलचल से निराश हो जाएँॉ बल्कि वे इसी समाज से आशा के नएदृनए स्त्रोत खोजते थे और अपने पाठको को नए उत्साह से भर देते थे।

अपनी अधिकत्तर रचनाओं में वे मध्यमवर्गीय जीवन के विविध पक्षों को सामने लाते हुए उनके अंतर्विरोधॉ कमजोरियों और ताकतों को कुछ इस तरह से प्रस्तुत करते हैं कि वे हमारे अपने अनुभव संसार का हिस्सा बन जाते हैं।

साम्प्रदायिकता एक और ऐसा इलाका है जहाँ स्वयं प्रकाश की रचनाशीलता अपनी पूरी क्षमता के साथ प्रदर्शित होती है।स्वयं प्रकाश की खिलंदड़ी भाषा और अत्यधिक सहज शैली का निजी और मौलिक प्रयोग उन्हें हमारे समय के सर्वाधिक लोकप्रिय कथाकार बनाता है।

कथाकार स्वयं प्रकाश का 7 दिसंबर 2019 को मुबंई के लीलावती अस्पताल में निधन हो गया।

कृ श्रीमती निभा सिंह
हिन्दी शिक्षिका

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